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क्या आप भी रमेश बाबू बनना चाहते हैं ?

समीक्षा
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अभी रजिस्ट्रार का दफ्तर को खुले ज्यादा देर नहीं हुई थी, रमेश बाबू दफ्तर मैं पहुचने वाले तीसरे व्यक्ति थे। रमेश बाबू ने रोज की ही तरह अपनी मेज पर अपना बस्ता रखा और रामू को आवाज लगायी। रामू बिजली की तेजी से उपथित  हुआ, रमेश बाबू ने हमेशा की तरह एक चाय मगाई। चाय का कप अभी खाली नहीं हुआ था की सूट -बूट पहने दो आदमी आये और  रमेश बाबू ने उन्हें बड़े ही आदर से बिठाया। उन्हें देखते ही रमेश बाबू  के चेहरे पर ऐसे चमक आ गयी मानो उनका सदियों से इंतजार कर रहे हों। वे आदमी  जिले के एम .पी के थे।  आये उन दो युवकों में से एक ने अपने बस्ते में से एक मिठाई  का डिब्बा निकला और रमेश बाबू  के हाथ में पकड़ा दिया. डिब्बा हाथ में पकड़ते ही मानो रमेश बाबू के शरीर में बिजली सा तेज आ गया। आता भी क्यूँ नहीं मिठाई दो लाख की जो थी। दूसरे युवक ने रमेश बाबू को नकली स्टाम्प पेपर से भरा एक  बस्ता दिया।  रमेश बाबू ने मिठाई का डिब्बा झट से अपने बस्ते के अन्दर रखा और रामू को आवाज दी। इस बार चाय नहीं  अन्दर अलमारी में नकली स्टाम्प पेपर वाला बस्ता रखने और असली स्टाम्प पेपर से भरा एक बस्ता लाने को कहा। काम होते ही  वे दोनों सज्जन पुरुष चले गए।

ये सिलसिला अगले दो महीनों तक चलता रहा। पर दो महीनो बाद रामू ने दो नए युवकों को रमेश बाबू  के लिए  मिठाई का डिब्बा लाते देखा। दरअसल  एम -पी से ज्यादा इस बार विपक्षी  दल के नेता ने मंहगी मिठाई भेजी थी। रामू के लिए कोई नया काम नहीं था, एक बस्ता ले जाकर अलमारी में रख दिया और दूसरा ले आया।

पर उस रात  शहर में एक घटना घटी। एक  लड़के का दिन -दहाड़े कुछ  लोगों ने खेल मैदान  के बहार कत्ल कर दिया था। लड़के के बगल में बैठ कर रोने वाला बाप कोई और नहीं रमेश बाबू ही थे। कत्ल करने वाले लोग  एम .पी  के ही आदमी  थे। एम -पी  के लिए रमेश बाबू  जैसे व्यक्ति को डराने-धमकाने का  ये कोई नया तरीका नहीं  था।

शाम  होते-होते जब रमेश बाबू अपने बेटे का क्रिया कर्म करा कर घर पहुचे तो अपने आप को एक  कमरे में बंद कर लिया ।

जब सुबह आवाज लगाने पर भी रमेश बाबू  ने दरवाज़ा नहीं  खोला तो पड़ोसियों को जबरन दरवाजा तोड़ कर अंदर आना पड़ा। अन्दर पहुँच कर रमेश बाबू को हाथ लगाया तो आमतौर पर कुत्ते की नींद सोने वाले रमेश बाबू के शरीर में कोई हलचल नहीं  हुई। रमेश बाबू अब इस दुनियां में नहीं रहे। लोगों ने हाथ की मुट्ठी खोली तो कागज के तुकडे पर ये लिखा मिला।

कलियों की बेचैनी
फोलों की नादानी
वो चिड़िया अनजानी
मैं देख नहीं पाया।
सावन का आना
कोयल का गाना
रामू का समझाना
मैं देख नहीं पाया
देखता भी कैसे
आखें तो बेच आया था
और इतना सौभाग्य मेरा था नहीं
जो भगवान ने दिल में आँखे दीं होतीं।

राधे-राधे

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