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ये सिलसिला अगले दो महीनों तक चलता रहा। पर दो महीनो बाद रामू ने दो नए युवकों को रमेश बाबू के लिए मिठाई का डिब्बा लाते देखा। दरअसल एम -पी से ज्यादा इस बार विपक्षी दल के नेता ने मंहगी मिठाई भेजी थी। रामू के लिए कोई नया काम नहीं था, एक बस्ता ले जाकर अलमारी में रख दिया और दूसरा ले आया।
पर उस रात शहर में एक घटना घटी। एक लड़के का दिन -दहाड़े कुछ लोगों ने खेल मैदान के बहार कत्ल कर दिया था। लड़के के बगल में बैठ कर रोने वाला बाप कोई और नहीं रमेश बाबू ही थे। कत्ल करने वाले लोग एम .पी के ही आदमी थे। एम -पी के लिए रमेश बाबू जैसे व्यक्ति को डराने-धमकाने का ये कोई नया तरीका नहीं था।
शाम होते-होते जब रमेश बाबू अपने बेटे का क्रिया कर्म करा कर घर पहुचे तो अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया ।
जब सुबह आवाज लगाने पर भी रमेश बाबू ने दरवाज़ा नहीं खोला तो पड़ोसियों को जबरन दरवाजा तोड़ कर अंदर आना पड़ा। अन्दर पहुँच कर रमेश बाबू को हाथ लगाया तो आमतौर पर कुत्ते की नींद सोने वाले रमेश बाबू के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई। रमेश बाबू अब इस दुनियां में नहीं रहे। लोगों ने हाथ की मुट्ठी खोली तो कागज के तुकडे पर ये लिखा मिला।
कलियों की बेचैनी
फोलों की नादानी
वो चिड़िया अनजानी
मैं देख नहीं पाया।
सावन का आना
कोयल का गाना
रामू का समझाना
मैं देख नहीं पाया
देखता भी कैसे
आखें तो बेच आया था
और इतना सौभाग्य मेरा था नहीं
जो भगवान ने दिल में आँखे दीं होतीं।
राधे-राधे
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