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प्रिय पाठको,
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो है की आप सब की शुभकामनाओं के कारण मैंने AFWWA ( Air Force Wives Welfare Association) द्वारा आयोजित Declamation Contest में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया।
प्रतियोगिता मैं दिए गए मेरे भाषण का प्रारूप इस लेख में प्रस्तुत है।
“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा”
जी हाँ, भारत का इतिहास एक स्वर्णिम इतिहास है. हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण विश्व को शांति, धर्म और अहिंसा का पाठ पढ़ाया है. विश्व के अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी महात्मा गाँधी ने भारत की पावन भूमि पर जन्म लिया था. परन्तु इस सब के बाद भी यदि आज मुझे इस मंच पर देश प्रेम, सहिष्णुता एवं अहिंसा की भावनाओं में गिरावट के विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है तो ये वास्तव में चिंतनीय विषय है.
देश प्रेम, सहिष्णुता एवं अहिंसा की भावनाओं में गिरावट का प्रमुख कारण मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताएं हैं. मैं ये नहीं कह रहा कि आवश्यकताएं नहीं होनी चाहिए. आवश्यकता तो अविष्कार की जननी होती है. यदि आवश्यकताएं खत्म हो गयीं तो मनुष्य के विकास की रेल रुक जायेगी. परन्तु आज हमारी आवश्यकताएं इतनी बढ़ गयीं हैं कि मनुष्य उन्हें पूरा करने के लिए अपने किसी भी नैतिक मूल्य से समझौता करने तो तैयार है.हमारी शिक्षा प्रणाली निरंतर रूप से बदल रही है. एक समय था, जब भारत के विश्वविद्यालय, नालंदा व तक्षशिला में दी जाने वाली नैतिक शिक्षा का पूरा विश्व लोहा मानता था. परन्तु आज की शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों का अभाव है. ज्ञान तो बट रहा है परन्तु उसके प्रयोग के लिए महत्वपूर्ण नैतिक मूल्यों का अभाव है.जहाँ तक सवाल सहिष्णुता एवं अहिंसा का है, तो ये दो शब्द आपस में ज्यादा परे नहीं हैं. सहिष्णुता का सीधा-सीधा अर्थ सहनशीलता से होता है, और सहनशीलता अहिंसा का सबसे बड़ा धर्म है. बढ़ती आवश्यकताओं के कारण मनुष्य संयम खो बैठा है, और ये संयम की कमी ही है जो मनुष्य के अन्दर हिंसा को जन्म देती है.उपायों की ओर चलें, आईये उस से पहले आपको एक किस्सा सुनाता हूँ. एक बार एक हथोड़े ने एक चाबी से पूछा कि सुन चाबी लोहा तो मेरे पास ज्यादा है, ताकत तो मेरे पास ज्यादा है परन्तु फिर तू ताले को इतनी सरलता से कैसे खोल देती है और मुझे इतनी ताकत लगानी पड़ती है. तब चाबी ने जवाब दिया, सुन हतोड़े, लोहा तो तेरे पास ज्यादा है, ताकत तो तेरे पास ज्यादा है, परन्तु तू ताले की उपरी सतह को छूता है और मैं ताले के अंतर मन तक जाती हूँ, उस से निवेदन करती हूँ और वो खुल जाया करता है. आज हमें जरूरत है कि हम लोगों के अंतर मन तक जाये और उन्हें समझने की कोशिश करें, तभी हम अपने देश में, देश प्रेम की भावना को बढ़ता हुआ देख सकते हैं.हमें जरूरत है, कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली में कुछ ऐसे बदलाव करें जिससे नैतिक मूल्यों को हमारी शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण विषय के तौर पर जोड़ा जाये.आइये आपको चलते-चलते एक सरल सा उपाय बताता हूँ, आप सोचिए कि आप जो भी काम कर रहे हों, जहाँ भी कर रहे हों, जिस किसी के साथ कर रहे हों, खुले में कर रहे हों या बंद में कर रहे हों, ये सोचिए कि यदि मेरी माँ यहाँ उपस्थित होती तो क्या ये सब देख कर उन का सर गर्व से ऊँचा हो जाता या वह शर्म से अपना सर नीचे झुका लेतीं. यदि ये परीक्षा भी किसी व्यक्ति के अन्दर देश प्रेम,सहिष्णुता एवं अहिंसा की भावनाओं को भरने में विफल रही तो वो मनुष्य, मनुष्य नहीं है, उसकी अंतर आत्मा मर चुकी है. और यकीन मानिए मैं आप सब की अन्तरआत्मायों को जीवित देखना चाहता हूँ.
“हर जर्रा है मोती आँख उठाकर देखो, पत्थर में सोना है हाथ बड़ा कर देखो,
सोने की गंगा,चांदी की यमुना है, चाहो तो रेतों में घास उगा कर देखो.”राधे-राधे
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