अश्रु पिपासा : स्याही की प्रेम कहानी, स्याही की जुबानी समीक्षा "परिंदों को मिलेंगीं मंज़िलें एक दिन, यह फैले हुए उनके पर बोलते हैं, वही लोग खामोश रहते हैं अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं." रात का सन्नाटा था ,
कंगाली में गीला आटा था,
गिरे कुछ ऐसे की फिर उठ न पाए,
न जाने किस कीड़े ने हमें काटा था.
सोने से अच्छा तो
घर का वो कोना है,
जहाँ धूप-छाँव कम ही आती है,
वहाँ जिंदिगी न जाने अपने आप को महफूज क्यूँ पाती है.
जब इन कमबख्त हाथों ने कुछ लिखने को स्याही की शीशी खोली,
स्याही रो-रो बोली,
जीवन में आशा सब साथ छोड़ गई है,
सुख का कर अंत रोने को हर बात छोड़ गयी है.
स्याही को यूँ रोते पहले कभी न देखा था,
स्याही ने ये करुणामयी बाण पहली बार फेंका था,
वो करुणामयी बाण दिल को भेद गया,
कठोरता की नौका में कर छेद गया .
जब नौका डूब रही थी,
सोने की आशा ऊब रही थी,
जब जिज्ञासा हर दुविधा को कर पार गयी,
चुप रहने की हमारी अभिलाषा हार गयी,
तब मुख द्वार को खुलने से न कोई रोक पाया
और अंतःकरण में से ये सवाल बहार आया.
कि हे-स्याही, आई तू फूल बन कर, फिर क्यूँ रोती है,
चादर महक की ओढ़े काँटों पर क्यूँ सोती है?
तेरा क्या दुःख है, तू मुझसे बोल,
दिल हो सके तो अपना तू मेरे सामने खोल.
पहले सकुचाई, पर जल्द ही मान गयी,
मेरी जिज्ञासा को जान गयी,
फिर क्या था, स्याही बोल उठी,
अपने दिल के सब पट खोल उठी.
थी मैं एक फूल का अंश , ये जान ले,
मेरे दर्द को ऐ-कवि पहचान ले,
मेरा बगीचा यहीं पास था,
और मेरे बगल में खड़ा वह गुलाब का फूल मेरा कुछ ख़ास था.जब से थी में एक कली में बंद,तब से उसे जानती थी,
उसे अपना अभिन्न अंग मानती थी,
उस गुलाब के फूल की अहमियत मैं कभी न जान पाई,
सुख का स्वामी था वह मेरा,ये बात कभी न जान पाई.
पर एक दिन ऐसी घटना घट गयी,
मेरा दुःख बड़ और खुशी घट गयी,
गुलाब का बड़ना मुझे उस दिल खल गया,
जब एक दिन माली उसे तोड़ ले घर चल गया.
अब बगीचा सूना था,
दुःख का हर पल दूना था,
अब गुलाब की अहमियत पता चल गयी,
प्यार था वह मेरा यह बात दिल में थम गयी.
सत्य तो यह है, कि वह बात मैं भी न जानती थी,
मैं तो उसे अपना दोस्त मात्र मानती थी,
पर उस की कमी यह बता गयी,
दिल को यह बात जता गयी.
कि वो खास कुछ खास क्यूँ था,
दूर होके भी पास क्यूँ था,
दुर्भाग्य मेरा कि उस के जीते जी यह न जान पाई,
प्यार था वह मेरा, यह न पहचान पाई.
कब वह दोस्ती प्यार में बदल गयी,
दिन तो रात, रात दिन में बदल गयी,
पर अब एक ही आशा बची है,
उसी को पूरा होता देखने को, आखरी साँस बची है.
जीते जी जो न हो सकी इच्छा पूरी,
मरने के बाद कर देना पूरी वह इच्छा अधूरी,
गुलाब की स्याही ने भी कुछ लिखा होगा,
वह कागज़ भी किसी संदूक में रखा होगा.
उस कागज़ को इस कागज़ से जोड़ देना,
जीवन को नया एक मोड़ देना,
जो जीते जी न हो सका, वो मरने के बाद हो जाएगा
वो कागज़ का जोड़ा मर कर भी अमर हो गायेगा.
अब स्याही का मुख द्वार बंद हो चुका था,
करुणामयी सागर का झोका थम चुका था,
इसी के साथ थम चुका था तूफान जिज्ञासा का,
अब समय था वो अश्रु पिपासा का.
राधे-राधे
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